नमस्कार मित्रो ,
सबसे पहले हर्षवर्धन जी को मेरा शुक्रिया इस ब्लॉग में लेखक के रूप में शामिल करने के लिए . हर्षवर्धन जी की गोरैया के लिए ब्लॉग बनाकर चलाई गयी मुहिम स्वागत योग्य है . मैंने इससे पहले अपने ब्लॉग
मुकेश पाण्डेय चन्दन में पक्षी श्रृंखला
में भी गौरैया सहित कई भारतीय पक्षियों के बारे में लिखा है . आप ऊपर दी गयी लिंक में पढ़ सकते है .
भारतीय पारिस्थितिकी के लिए गौरैया बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है .
दोस्तों , पहले हमारे हर घर घर में आसानी से फुदकती गौरैया अब मुश्किल से दिखती है । गौरैया का गायब होना एक साथ बहुत से प्रश्न खड़े करता है ।
जैसे - क्यो गौरैया ख़त्म हो रही है ?
आज हम मनुष्यो पर निर्भर इस चिडिया के आवास क्यो ख़त्म हो गए है ?
गौरैया अगर ख़त्म हो गई तो समझो हम बहुत बड़े धर्म संकट में पड़ जायेंगे ! क्योंकि हमारे धर्म गर्न्ठो के अनुसार पीपल और बरगद जैसे पेड़ देवता तुल्य है। हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है । पीपल और बरगद ऐसे वृक्ष है जो कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते , इनके बीजो को जब गौरैया खाती है और बीज जब तक उसके पाचन तंत्र से होकर नही गुजरते तब तक उनका अंकुरण नही होता है । इसीलिए अपने देखा होगा की ये ब्रक्ष अधिकांशतः मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है , क्योंकि इनके आस-पास गौरैया का जमावडा होता है । मेरी ये बात निराधार नही है । मोरिशस और मेडागास्कर में पाया जाने वाला एक पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है , क्योंकि उसे खाकर अपने पाचन तंत्र से गुजरने वाला पक्षी दोदो अब विलुप्त हो चुका है यही हाल हमारे यंहा गौरैया और पीपल का हो सकता है । अगर हम न चेते तो ........? अतः आप सभी से निवेदन है की आप स्वयं और अपने जन पहचान के लोगो को इस बारे में बताये और हमारी संस्कृति और पर्यावरण को एक संकट से बचने में सहयोग करे । मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।
आपका अपना- मुकेश पाण्डेय "चंदन"
सबसे पहले हर्षवर्धन जी को मेरा शुक्रिया इस ब्लॉग में लेखक के रूप में शामिल करने के लिए . हर्षवर्धन जी की गोरैया के लिए ब्लॉग बनाकर चलाई गयी मुहिम स्वागत योग्य है . मैंने इससे पहले अपने ब्लॉग
मुकेश पाण्डेय चन्दन में पक्षी श्रृंखला
में भी गौरैया सहित कई भारतीय पक्षियों के बारे में लिखा है . आप ऊपर दी गयी लिंक में पढ़ सकते है .
भारतीय पारिस्थितिकी के लिए गौरैया बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है .
दोस्तों , पहले हमारे हर घर घर में आसानी से फुदकती गौरैया अब मुश्किल से दिखती है । गौरैया का गायब होना एक साथ बहुत से प्रश्न खड़े करता है ।
जैसे - क्यो गौरैया ख़त्म हो रही है ?
आज हम मनुष्यो पर निर्भर इस चिडिया के आवास क्यो ख़त्म हो गए है ?
गौरैया अगर ख़त्म हो गई तो समझो हम बहुत बड़े धर्म संकट में पड़ जायेंगे ! क्योंकि हमारे धर्म गर्न्ठो के अनुसार पीपल और बरगद जैसे पेड़ देवता तुल्य है। हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है । पीपल और बरगद ऐसे वृक्ष है जो कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते , इनके बीजो को जब गौरैया खाती है और बीज जब तक उसके पाचन तंत्र से होकर नही गुजरते तब तक उनका अंकुरण नही होता है । इसीलिए अपने देखा होगा की ये ब्रक्ष अधिकांशतः मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है , क्योंकि इनके आस-पास गौरैया का जमावडा होता है । मेरी ये बात निराधार नही है । मोरिशस और मेडागास्कर में पाया जाने वाला एक पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है , क्योंकि उसे खाकर अपने पाचन तंत्र से गुजरने वाला पक्षी दोदो अब विलुप्त हो चुका है यही हाल हमारे यंहा गौरैया और पीपल का हो सकता है । अगर हम न चेते तो ........? अतः आप सभी से निवेदन है की आप स्वयं और अपने जन पहचान के लोगो को इस बारे में बताये और हमारी संस्कृति और पर्यावरण को एक संकट से बचने में सहयोग करे । मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।
आपका अपना- मुकेश पाण्डेय "चंदन"
बहुत सुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंएक कविता मैंने भी लिखी है ......... गोरैया पर :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख !!
apki kavita hamse bhi sajha jarur kare sinha ji
हटाएंबढ़िया लेखन सर जी और ये तो हमारी ख़ुशनसीबी है जो इस सार्थक कार्य के लिए आप हमसे जोड़े :-)
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद।।
सुंदर और चिंतनीय आलेख.....मे भी पर्यावरण और प्रकृति से कुछ ज्यादह ही जुडी हुई हूँ ,और ये मानती हूँ की " ये हैं तो हम हैं "
जवाब देंहटाएंबेहद आवश्यक चेतना परक लेख !! बधाई ....
जवाब देंहटाएंचिंतनीय विषय..जनचेतना को झंंकृत करने वाली बात...
जवाब देंहटाएंबात बेहद गंभीर है....पर सवाल ये है कि क्या किया जाए। मोबाइल हम छोड़ नहीं सकते...तो क्या प्रकृति गौरेया की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगी? ये हमें पता नहीं। इसलिए बेहतर है कि हम कोई साकार कोशिश करें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंसच कहा गौरिया नहीं बची तो हम भी नहीं बचेंगे
जवाब देंहटाएंरोचक किंतु गम्भीर आलेख के लिये बधाई.
जवाब देंहटाएं🌏🌏🌏🌏🌴🌴🌴🌹🐥🌹🌴🌴🌴🌏🌏🌏🌏
जवाब देंहटाएंआदरणीय चन्दन जी ! इस धरती के प्रत्येक जीव का वानस्पतिक जगत से अटूट रिश्ता है । प्रकृति ने एक चेन ( श्रृंखला) बनाई हुई है , उस चेन की कोई भी कड़ी टूटती है तो उसका पूरे जैविक मंडल पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ता है । मानव जनित बढ़ते प्रदूषण से केवल गौरैया का "विलुप्ति" ही आज हो रहा हो, ऐसा नहीं है ,मानव अपने विनाश का भी एक आधार तैयार कर रहा है । अत्यधिक प्रदूषण से आज जैवमंडल के बहुत से पशु-पक्षियों का विलोपन हो रहा है ,तो ऐसा नहीं है कि मानव के स्वास्थ्य पर प्रदूषण का कोई असर नहीं हो रहा है । अक्सर सुनाई देने वाली असाध्य विमारियों जैसे कैंसर ,हृदयाघात ,ब्रेन हेमरेज आदि-आदि बढ़ते प्रदूषण का प्रतिफल है । अगर प्रदूषण की यही गति जारी रही तो वैज्ञानिकों के अनुसार अगले सौ सालों में मानव प्रजाति भी विलुप्त हो सकती है -निर्मल कुमार शर्मा ," गौरैया संरक्षण" ,गाजियाबाद , मोबाईल नंबर 9910629632
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